Tenant Rights 2025: किराए पर रहने वाले लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मकान मालिक की मनमर्जी, बिना सूचना के मकान खाली करवाना, और मूलभूत सुविधाओं से वंचित करना आम हो चुका है। इन सभी समस्याओं पर रोक लगाने के लिए सरकार ने 2025 में किराएदारों को 5 कानूनी अधिकार दिए हैं। इन अधिकारों के जरिए अब किराएदार कानून के जरिए अपनी सुरक्षा कर सकते हैं।
निजता का अधिकार
कोई भी मकान मालिक अब किराएदार की निजता में दखल नहीं दे सकता। बिना पूर्व सूचना के मकान मालिक किराएदार के घर में प्रवेश नहीं कर सकता। अगर किराया बढ़ाना है तो मकान मालिक को तीन महीने पहले नोटिस देना जरूरी है। किराया बढ़ाने से जुड़ी सारी शर्तें रेंट एग्रीमेंट में पहले से तय होनी चाहिए। यह नियम किराएदार की निजता और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
मकान खाली कराने का नियम
अब कोई भी मकान मालिक बिना वजह किराएदार को मकान खाली करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। अगर किराएदार रेंट एग्रीमेंट के अनुसार रह रहा है तो मकान मालिक को कानूनी कारण देना जरूरी होगा। सिर्फ तभी मकान खाली कराया जा सकता है जब किराएदार दो महीने से किराया नहीं दे रहा हो या मकान को नुकसान पहुंचा रहा हो। नोटिस देना अब कानूनी रूप से अनिवार्य है।
सुविधाएं देने की बाध्यता
किराएदार को मकान में रहने के दौरान सभी जरूरी सुविधाएं मिलनी चाहिए। इनमें बिजली, पानी, शौचालय जैसी चीजें शामिल हैं जिनसे कोई मकान मालिक इनकार नहीं कर सकता। मकान किराए पर लेते समय ये सारी चीजें स्पष्ट होनी चाहिए। यदि इनमें कोई कमी है तो किराएदार संबंधित अधिकारियों के पास शिकायत कर सकता है। हर राज्य के नियम अलग हो सकते हैं लेकिन मूलभूत अधिकार सभी को मिलते हैं।
परिवार को सुरक्षा का अधिकार
कभी-कभी किराए पर रहने के दौरान किसी किराएदार की मृत्यु हो जाती है। ऐसी स्थिति में मकान मालिक परिवार को तुरंत बाहर नहीं निकाल सकता। यदि रेंट एग्रीमेंट अभी भी वैध है तो उसका स्थानांतरण परिवार के किसी सदस्य के नाम पर हो सकता है। इससे किराएदार का परिवार मानसिक और आर्थिक दोनों तरह से सुरक्षित रहता है। अब यह अधिकार कानूनी रूप से मान्य हो गया है।
सिक्योरिटी राशि की वापसी
किराएदार से ली गई सिक्योरिटी राशि अब मनमाने तरीके से जब्त नहीं की जा सकती। मकान खाली करने के बाद अगर कोई नुकसान नहीं हुआ है तो मकान मालिक को पूरी राशि लौटानी होगी। केवल नुकसान की स्थिति में ही कुछ हिस्सा काटा जा सकता है। किराएदार इस राशि को वापस पाने के लिए कानूनी दावा भी कर सकता है। अब इस राशि पर केवल मकान मालिक का एकाधिकार नहीं है।
1948 का केंद्रीय अधिनियम
भारत में किरायेदारी को लेकर 1948 में केंद्रीय किराया नियंत्रण अधिनियम बनाया गया था। यह कानून किराएदार और मकान मालिक दोनों के अधिकारों की रक्षा करता है। हालांकि इसकी व्याख्या राज्य अनुसार अलग हो सकती है लेकिन मूल प्रावधान लगभग एक जैसे रहते हैं। इसी अधिनियम के अंतर्गत अब नई शर्तों और अधिकारों को जोड़ा गया है जिससे किराएदारों को अधिक संरक्षण मिले।
राज्यवार नियमों में बदलाव
हर राज्य की सरकार ने अपने-अपने हिसाब से किराएदारी कानूनों में संशोधन किया है। कई राज्यों ने किराया बढ़ाने, मकान खाली कराने और सुरक्षा राशि लौटाने से संबंधित नियमों को अधिक पारदर्शी बनाया है। मकान मालिक और किराएदार के बीच रेंट एग्रीमेंट अनिवार्य कर दिया गया है ताकि किसी विवाद की स्थिति में दस्तावेजी प्रमाण हो। इन बदलावों से विवादों की संभावना कम हुई है।
रेंट एग्रीमेंट की भूमिका
रेंट एग्रीमेंट अब सिर्फ एक औपचारिकता नहीं बल्कि कानूनी सुरक्षा का दस्तावेज है। इसमें किराए की राशि, बढ़ोतरी का पैटर्न, रहने की अवधि और खाली करने की शर्तें साफ-साफ लिखी जाती हैं। यह दस्तावेज किसी भी विवाद की स्थिति में अदालत में भी मान्य होता है। इसलिए हर किराएदार और मकान मालिक को रेंट एग्रीमेंट बनवाना अनिवार्य कर दिया गया है।
मकान मालिकों की जवाबदेही
किराएदारों को अधिकार मिलने के साथ-साथ मकान मालिकों की जिम्मेदारी भी तय की गई है। अब उन्हें किरायेदारी से संबंधित हर नियम का पालन करना होगा। मनमानी करने पर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। इससे किराए पर मकान देने की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और सुरक्षित बनी है। अब मकान मालिकों को भी कानून का पालन करना जरूरी होगा।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सूचना के उद्देश्य से तैयार किया गया है। कृपया किसी भी कानूनी कदम से पहले संबंधित विभाग या अधिकृत कानूनी सलाहकार से पुष्टि अवश्य करें। कानून में समय-समय पर बदलाव संभव हैं।